तेजस्वीता + तपस्वीता + तत्परता = पुष्टि युवा. _________गो.हरिराय..

Thursday, August 13, 2009

जन्माष्टमी

भगवान का जन्मोत्सव विक्रम संवत 2066 के भाद्रपद महीने के अष्टमी तिथि को सम्पूर्ण विश्व में हिन्दू धर्मावलम्बियों द्वारा मनाया जा रहा है ईसाई पंचांग के अनुसार यह शुभ दिन १४ अगस्त २००९ को है
पुराणानुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था वासुदेव और देवकी की यह आठवीं सन्तान विश्व कल्याणार्थ अवतरित हुयी कहा जाता है रोहिणी नक्षत्र के जातक पतले, स्वार्थी, झूठे, सामाजिक, मित्राचार वाले, दृढ़ मनोबल वाले, बुद्धिशाली, पद-प्रतिष्ठा वाले, रसवृत्ति वाले, सुखी, संगीत कला इत्यादि ललित कलाओं में रस रखने वाले, देव-देवियों में आराध्य वाले मिलते हैं। रोहिणी नक्षत्र में जन्म का ही असर था की भगवान में सारे गुण मौजूद थे
संसार को ज्ञानयोग और कर्मयोग की दिव्य ज्योति दिखानेवाले का जन्म कृष्णपक्ष की अंधियारी रात में हुआ ज्योति की कोई किरण न रहे इसलिए प्रभु ने तूफान भी उठा दिया प्रकाश का अवतरण तमस के कोख से हुआ
जहाँ तक जन्म की प्रक्रिया को समझें तो इसकी रहस्यमय गुत्थी में उलझ सकते हैं यह नितांत सत्य है की किसी का भी जन्म प्रकाश में नहीं हो सकता एक बीज जमीन के अँधेरे में ही पनपता है, अंकुरण भूगर्भ में ही होता है जहाँ अँधेरे का साम्राज्य होता है अमृत का उद्भेद समुन्द्र के गहन से ही हुआ है कवि अपने कल्पना के गहराई में ही पैठ लगता है जहाँ सूर्य की किरने नहीं जा सकतीं घनघोर अँधेरे में ही प्रकाश का उद्ध्भव सार्थक होता है
और कारागृह में जन्म एक बंधन का सूत्र है सभी जन्म लेते हैं, एक बंधन मिलता है, सामाजिक वैचारिक कारागृह की और अंत में सभी मुक्त भी होते हैं जीवन और मरण के बिच यह कारागृह ही होता है, जो संसार के हर बाधाओं को झेलने की प्रेरणा देता है, एक राह देता है कारागृह एक शर्त है, बंधन एक शर्त है क्योंकि जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु संभावी है प्राण का शारीर में प्रवेश ही एक कारागृह में प्रवेश है जो मृत्युपरांत ही बंधन मुक्त होती है
जन्म के बाद प्रतिपल मृत्यु का भय है, और यहाँ भगवान को तो अपने मामा कंस के द्वारा मारा जाना निश्चित था मृत्यु हर संभावी थी मगर उन्होंने खुद को मुक्त कर लिया मृत्यु से मुक्ति होती है, किसी को इसी कारागृह में तो किसी को मुक्त आकाश तले
वृन्दावन के आनंद धाम में कृष्ण मुक्त तो रहे मगर कंस के द्वारा भेजा हुआ मौत उनतक आता रहा और हरता रहा तात्पर्य यह है की मृत्यु हर एक रूप में आती है मगर हारती है जीवन और मृत्यु का संघर्ष चलता ही रहता है कुछ लोग खुद हार जाते हैं तो कुछ जीवन को इस संघर्ष से मुक्ति का मार्ग दिखाते हैं समाधी लेते हैं,परिनिर्वाण करते हैं
कंस के तामसिक साम्राज्य का अंत हो या महाभारत की कुरीतियों अन्यायों का, कृष्ण हर जगह मौजूद रहे क्रिशन का शाब्दिक अर्थ कला ही नहीं होता, केंद्र भी होता है अर्जुन के ज्ञान चक्षुओं को खोलने वाले कृष्ण ही दोनों सेनाओं में थे अर्जुन ने तो विराट रूप में सिर्फ कृष्ण को ही देखा, महाभारत में वही आदि वही अंत बने रहे
कृष्ण एक शक्ति है जो हमारे शरीर में केन्द्रित है हमारे जन्म-मरण के बिच का केंद्र जो जीवन के समस्त क्रियाविधियों को अपने गुरुत्वीय बल से संतुलित रखता है अंधकार और प्रकाश के बीच की वो कड़ी जो हर टिमटिमाते दिए की लौ में तेज भरता है काले कृष्ण की प्रकाशमयी लीलाएं, मानव जीवन को सद्मार्ग दिखाती हैं
कृष्ण एक महाकाव्य हैं जिसकी हर एक पंक्ति गूढ़ रहस्य समेटे है जीवन का सरल सूत्र रुपी मोती इस महाकाव्य के सागर में पैठने पर मिल सकता है
भगवान श्रीकृष्ण आपके जीवन नैया के खेवनहार हैं, आपको हर मझधार से उबारें और आगे बढायें
जय श्री कृष्ण