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भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं कि हे अर्जुन जिस काल में यह पुरुष मन में स्थित संपूर्ण कामनाओं को भली भांति त्याग देता है उस काल से आत्मा से ही आत्मा में संतुष्ट हुआ स्थिर बुद्धि वाला कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति में चेतन शक्ति है और वही चेतन शक्ति यदि लोभ में चली जाए तो यह मनुष्य निर्मल होते हुए भी लोभी विकारी हो जाता है तथा सदाचारी से दुराचारी हो जाता है। गीता हमारे जीवन में एक दर्पण है। आज परिवार व समाज तथा विश्व में अशांति का कारण द्वेष, क्रोध तथा कामना है।
मनुष्य के जीवन में सुख-दुख दोनों आयेंगे तथा जो दुख आने पर बौखला न जाए वही गीता के अनुसार स्थित प्रज्ञ है तथा उसी को स्थायी सुख की प्राप्ति हो सकती है।
भलाई को अपनाने पर स्वत:ही मनुष्य का कल्याण संभव है। इसीलिए विद्वानों ने कहा है कि बुराई त्याग दो भलाई अपने आप आ जाएगी। भलाई के दरवाजे पर अगर बुराई दस्तक देती है तो भलाई को अपमानित होना पडता है। लेकिन अगर बुराई के दरवाजे पर भलाई दस्तक दे तो वह बुराई को अपनी ओट में छुपा लेती हैं। सच कहा जाए तो इंसान मरने के बाद भी भलाई और बुराई के अलावा दुनिया से कुछ नहीं लेकर जाता है। समाज में इंसान का व्यवहार जैसा होता है मरने के बाद उसको वैसा ही कहा जाता है।
Go.Hariray.....
एक अच्छा प्रयास....शुभकामनाऎं
ReplyDeletebahut sundar, narayan narayan
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आपका स्वागत है.
ReplyDeleteबहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्लाग जगत में स्वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
ReplyDeletebahut khoob.............!!
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